ठोस अपशिष्ट क्या हैं?
• कचरे के ढेर आज एक आम बात बन गई है, जो पर्यावरण, नदी, तलाब और कुँओं तथा झीलों को प्रदूषित करता जा रहा है।
• ठोस कचरा आवासीय, औद्योगिक या वाणिज्यिक क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न अवांछित या बेकार ठोस सामग्री है। इसे तीन रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है मूल आधार (घरेलू, औद्योगिक, वाणिज्यिक तथा निर्माण या संस्थागत), सामग्री (जैविक, कांच, धातु, प्लास्टिक व पेपर आदि), खतरनाक कारक (विषाक्त, गैर विषैले, ज्वलनशील, रेडियोधर्मी तथा संक्रामक) इत्यादि।
अपशिष्ट के अन्य प्रकार
• तरल अपशिष्ट- घरेलू और उद्योग स्थलों द्वारा उत्पन्न तरल अपशिष्ट।
• कार्बनिक अपशिष्ट- खाद्य, उद्यान और लॉन की कटाई-छटाई से निकलने वाले पदार्थ।
• जैव चिकित्सा अपशिष्ट- मनुष्यों या जानवरों के निदान, उपचार या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट।
• पुनर्नवीनीकरण अपशिष्ट- उन सभी अपशिष्ट वस्तुओं का समावेश, जिन्हें पुनः उपयोग में लाने के लिए परिवर्तित किया जाता है।
अपशिष्ट प्रबंधन का वर्तमान स्वरूप
• स्वच्छ भराव क्षेत्र
• महासागर डंपिंग
• भस्मीकरण
• खाद
• अपशिष्टों का पृथक्करण, पुनर्नवीनीकरण और पुनः प्राप्ति
• अपशिष्टों का मैकेनिकल और जैविक उपचार
डब्ल्यूटीई संयंत्रों की जरूरत क्यों
• देश भर में प्रतिदिन लगभग 1.43 लाख टन नगरपालिका का ठोस कचरा उत्पन्न होता है, जिसे निपटाने की विशेष जरूरत है।
• केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार भारत में 25,940 टन प्रतिदिन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता है।
• केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रलय के अनुसार, वर्ष 2031 तक 4.5 लाख टन प्रतिदिन कचरे का उत्पादन होगा, जो 2050 तक 11.9 लाख टन प्रतिदिन तक यह पहुँच जाएगा।
• भारत में नगरपालिका के ठोस कचरे में कम कैलोरी और उच्च नमी की मात्र पाई जाती है।
• अधिकांश अपशिष्टों में अत्यंत निष्क्रिय पदार्थ मौजूद होते हैं, जो संयंत्र में अपशिष्ट को पृथक करने के लिये उपयुत्तफ़ नहीं हैं।
• नीति आयोग का प्रयास है कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत डब्ल्यूटीई संयंत्रों से 800 मेगावाट तक की बिजली उत्पन्न की जा सके।
अपशिष्ट प्रबंधन में भारत की स्थिति
हमारे गाँवों व शहरों में जगह-जगह लगे कचरे के ढेर और उनमें पनपते रोग आज गंभीर खतरा बन चुके हैं। पशु-पक्षियों की मृत्यु भी आज कचरा खाने के साथ ही कचरे में उत्पन्न विषैली गैसों, और कीटाणुओं से हो रही है। ऐसे में आज कचरे का प्रबंधन उचित तकनीक के माध्यम से होना समय की मांग है।
• 1987 के बाद से, देश भर में 15 डब्ल्यूटीई संयंत्र स्थापित किए गए हैं, लेकिन इनमें से सात संयंत्र बंद हो गए हैं। बंद संयंत्रों में दिल्ली के अलावा, कानपुर, बंगलुरू, हैदराबाद, लखनऊ, विजयवाड़ा और करीमनगर के संयंत्र शामिल हैं।
• विश्लेषकों के अनुसार भारत में लगभग 32 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पन्न होता है और इसका 60% से भी कम इकट्ठा किया जाता है और केवल 15% ही संसाधित होता है।
• भारत में अपशिष्ट प्रबंधन की बढ़ती समस्याओं के कारण ग्रीनहाउस गैस का बढ़ता प्रभाव तथा लैंडफिल के साथ भारत ऐसे मामलों में तीसरे स्थान पर है।
• भारत सरकार ने इन समस्याओं को देखते हुए 16 साल के बाद सॉलिड वेस्ट मैनेजमेन्ट को संशोधित किया है जिसके अंतर्गत एक संस्थागत ढाँचे का प्रावधान किया गया है।
अपशिष्ट संग्रह और प्रबंधन के विधि
• डोर-टू-डोर संग्रह
• सूखे तथा गीले कचरे का अलग संग्रह करना
• कचरे को भूमिगत डम्पिंग करना
• अपशिष्ट कचरे के प्रबंधन को लेकर प्रत्येक क्षेत्र में नई-नई तकनीकों के माध्यम से उचित प्रबंधन के प्रयास भी किये जा रहे हैं साथ ही हम वेस्ट टू वेल्थ यानी ‘कचरे से सम्पन्न’ की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।
पुनर्चक्रण विधि के अन्य तरीके
• भौतिक पुनः परिष्करण- पुनर्चक्रण का लोकप्रिय अर्थ व्यापक संग्रह और रोजाना अपशिष्ट पदार्थों का पुनः प्रयोग को संदर्भित करता है जैसे कि खाली पेय पात्र, अखबार और कांच की बोतले आदि सभी वस्तुओं को इकट्ठा कर इनका पुनर्चक्रण किया जाता है।
• ऊर्जा के रूप में ठोस अपशिष्ट- ओखला, दिल्ली थर्मल ट्रीटमेंट में एनर्जी प्लांट के ठोस अपशिष्ट से ऊर्जा प्राप्त की जाती है तथा अपशिष्ट को कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प और राख में बदल दिया जाता है। यह कचरे से ऊर्जा को पुनर्प्राप्त करने का एक साधन है।
• जैविक उपचार विधियाँ- इसमें कचरे के जैव निम्नीकरणीय घटकों को विघटित करने के लिये सूक्ष्म जीवों का उपयोग किया जाता है, इसमें दो प्रकार की प्रक्रियाएँ होती हैं-
• एरोबिक यह ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है, इसमें विंड्रो कम्पोस्टिंग तथा इन पॉट कम्पोस्टिंग तथा वर्मी कल्चर शामिल हैं।
• एनारोबिक-ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है इसमें लैंडफिल तथा ओपन डम्पिंग शामिल है।
• जिम्मेदारी और हितधारक सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट- यह राज्य का विषय है कि राज्य यह सुनिश्चित करें कि उसके सभी शहरों और कस्बों में उपयुक्त ठोस कचरा प्रबंधन सुविधा/तकनीक है की नहीं। हालाँकि ठोस कचरा प्रबंधन करना नगरपालिका का कर्त्तव्य है। जो इसके लिए सीधे जिम्मेदार है, इसके द्वारा संबंधित शहरों/कस्बों में ठोस कचरा प्रबंधन की योजना डिजाइन, संचालन ओर रख-रखाव किया जाता है। नगरपालिका के बजट का 10% से 50% ठोस कचरा प्रबंधन के लिए आवंटित किया गया है।
• ठोस कचरा प्रबंधन से जुड़े नियम और कानूनः 74वें संवैधानिक संशोधन के तहत, नगरपालिका सॉलिड वेस्ट के निपटान और प्रबंधन नगर निगमों और नगर पंचायतों के 18 कार्यात्मक डोमेन में से एक है। ठोस प्रबंधन के लिए कानून-जैव चिकित्सा अपशिष्ट नियम 1998, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट नियम 2000, प्लास्टिक अपशिष्ट नियम 2011 तथा ई-अपशिष्ट नियम 2011 हैं।
• रैगपिकर्स/मैनुअल स्कैवेंजिंग वेस्ट मैनेजमेंट- इनके माध्यम से ही अनेक स्थानों पर कचरा इकट्ठा किया जाता है और साथ ही अनौपचारिक क्षेत्र का बड़ा नेटवर्क भी स्थानीय स्तर पर कचरे के प्रबंधन में प्रभावी रूप से सहायक होता है। भारत में रैगपिकर्स की एक राष्ट्रीय संस्था एनएसडब्ल्युएआई (NSWAI- National Solid waste association of India) है। यह इंटरनेशनल सॉलिड वेस्ट एसोसिएशन से भी जुड़ी है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट क्षेत्र में सूचना और विशेषज्ञता के आदान-प्रदान का एक मंच है जिसके द्वारा लोगों में जागरूकता फैलायी जाती है।
वैज्ञानिक विधि से अपशिष्ट पदार्थों का प्रबंधन
• 3-आर (3-R) की अवधारणा- 3-आर अर्थात रीयूज, रीड्यूस और रीसायकल। यह ठोस प्रबंधन का महत्वपूर्ण तरीका है।
• शून्य अपशिष्ट प्रणाली- उद्योगों द्वारा अपशिष्ट प्रबंधन के कार्य को सरल बनाकर और अपने अपशिष्ट प्रबंधन को केन्द्रीकृत करके, इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना।
अपशिष्ट प्रबंधन के लाभ
प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षाः वनों, गैसों और पानी जैसे कई प्राकृतिक संसाधनों की घटती समस्या हमारे लिए गम्भीर चिन्ता का विषय बन गई है। इसलिए आवश्यक है कि प्लास्टिक आदि की बनी वस्तुओं के पुनः उपयोग से हम वनों की कटाई इत्यादि को रोक सकते हैं।
ऊर्जा क्षमता में बढ़ोत्तरीः पुनरावृत्ति ऊर्जा का उत्पादन करने का एक शानदार तरीका है। नई वस्तुओं का उत्पादन करने हेतु अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। प्रयोगों से यह पता चला है कि हमारे घरों के अपशिष्ट पदार्थों को एक विशेष प्रणाली के द्वारा बिजली उत्पन्न में प्रयोग किया जा सकता है।
प्रदूषण में कमीः खुले में कचरा इकट्ठा करना या फिर भूमिगत डम्पिंग से जल प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। यदि अपशिष्ट प्रबंधन वैज्ञानिक विधि से किया जाए तो प्रदूषण का स्तर कम हो सकता है।
अपशिष्ट पुनरावृत्तिः अपशिष्ट दिन-प्रतिदिन गम्भीर समस्या बनते जा रहे हैं, जैसे-अपशिष्टों का समुद्र में प्रवाह तथा कचरे को नदियों या खुले क्षेत्रों में फैंकना आदि, लेकिन अपशिष्टों को उपयोगी रूप में पुनः परिवर्तित कर इस समस्या को कम किया जा सकता है।
अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौतियाँ
• भारतीय परिदृश्य के तहत, आम व्यक्ति के लिए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन का दृष्टिकोण वैज्ञानिक नहीं है। साथ ही भारत में पहले से मौजूद तकनीक तथा विधियों पर ही पुराने ढर्रे से काम हो रहा है, अभी तक भी नई-नई तकनीकों, कानूनों तथा लोगों में जागरूकता को उस स्तर पर नहीं लाया जा सका है जिसकी वर्तमान समय में आवश्यकता है।
• अपशिष्ट संयंत्रों की अक्षमता या बंद होने का मूल कारण अपशिष्ट की गुणवत्ता और उसकी संरचना है।
• अपशिष्ट पदार्थों को जलाने के लिए अतिरित्तफ़ ईंधन की आवश्यकता होती है, जो इन संयंत्रों को चलाने के लिए महँगा साबित होता है।
• इसके अलावा इन कारखानों से उत्पादित विद्युत की दर लगभग 7 रुपए प्रति यूनिट है जो कि थर्मल एवं सौर स्रोतों से प्राप्त 3-5 रुपए प्रति यूनिट की अपेक्षा काफी महँगी है।
• नीति आयोग ने अपने स्वच्छ भारत मिशन के हिस्से के रूप में 2018-19 में स्थापित डब्ल्यूटीई संयंत्रों से 800 मेगावाट ऊर्जा प्राप्ति की परिकल्पना की है, जो सभी मौजूदा डब्ल्यूटीई संयंत्रों की क्षमता से 10 गुना अधिक है।
Very nice and useful for me
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